Tuesday, July 10, 2012

...इन सबसे ऊपर हैं करदाता पीयूष मिश्रा!

साभार : विकिपीडिया
बीबीसी से साथ एक गप-शप में पीयूष मिश्रा कहते हैं कि वे टैक्स देते हैं इसलिए वे विरोध करेंगे। टैक्स देने और विरोध करने के बीच का संबंध पहले भी शोभा डे जैसी विदुषी हमें समझा चुकी हैं। और भी कई लोग हमें बताते रहे हैं। चूँकि मैं कम टैक्स देता हूँ, मुझे विरोध करने का कम हक है। मेरा एक भाई टैक्स नहीं दे पाता है, उसे विरोध करने का कोई हक नहीं। स्टैंड पीयूष मिश्रा कलाकार के कारण ले पाते हैं लेकिन विरोध करने का हक उन्हें टैक्स देने के कारण मिलता है। और निश्चित रूप से अनुपात के मुताबिक उन्हें विरोध करने का अधिक हक होगा। शाबाश।

पता नहीं इसे पैसे कमाने का अहंकार कहें या फिर सफलता का - जो इनलोगों को छोटी-मोटी आमदनी पर गुजारा करनेवालों अरबों लोगों पर बदतमीजी करने की छूट देती है। सबसे ताज्जुब तो है कि जो आदमी ठीक से पूंजीवादी व्यवस्था से सिंचित भारत जैसे लोकतांत्रिक समाज की वर्णमाला की समझ रखने का हकदार भी अपनी ऊपर की टिप्पणी के कारण नहीं है (कि वह टैक्स देते हैं इसलिए वह विरोध का हक रखते हैं), उनकी मार्क्सवाद पर टिप्पणी को लेकर बहस चलती है। जिन्हें टैक्स देना इतना महत्वपूर्ण लगता हो, वह मार्क्सवादी या फिर लोकतांत्रिक भी कैसे हो सकता है। वह तो साधारण और ठेठ अर्थों का लोकतांत्रिक भी नहीं हो सकता है। वह निश्चित रूप से 22 साल में भी वामपंथी नहीं रहे होंगे। उस वक्त लोकतंत्र में भी उनका विश्वास नहीं रहा होगा। यदि ऐसा होता तो वह ऐसा कभी नहीं बोल पाते। इतना आकार तो उनके विचार को लोकतंत्र या मार्क्सवाद दे ही देता। मार्क्सवाद का ककहरा भी यदि लागू हो जाए तो पीयूष मिश्रा को पता है कि उनकी आमदनी 30 हजार रूपए सालाना के आस-पास ठहरेगी। और फिर वह टैक्स नहीं दे पाएँगे। और टैक्स न दे पाए तो फिर विरोध करने का हक खो देंगे। और वह विरोध किसलिए करेंगे...जाहिर है कि टैक्स दे पाने की अपनी ठसक को बचाए रखने के लिए। गीतकार, कलाकार, लेखक इन सबसे ऊपर हैं टैक्स देनेवाला पीयूष मिश्रा - करदाता पीयूष मिश्रा।

Monday, July 9, 2012

بیشک ھم آگے بھی موزیللہ اور اردو زبان کے لئے کام کرتے رہینگے

बेशक फैज़ल, हम आगे भी मोज़िल्ला और उर्दू के लिए काम करते रहेंगे। फ़ैजल काफी जोशो-खरोश वाले हैं और एआईएमएस के और सभीलोग भी उन्हीं जैसे हैं और इसलिए हम इसे बिना किसी संकोच के कह सकते हैं कि उर्दू के लिए आगे बढ़ा उनका यह कदम कई और लोगों के साथ मिलकर एक आंदोलन बनेगा और फिर हम फ़ायरफ़ॉक्स से शुरूआत कर ओपनसोर्स के अलग-अलग एप्लीकेशन पर भी उर्दू की मौज़ूदगी देख पाएँगे।

शनिवार 7 जुलाई को आयोजित किए गए एक कार्यक्रम में AIMS की टीम ने साबित कर दिया कि इकट्ठा होकर यानी एक साथ मिलकर शानदार कार्यक्रम कैसे किए जा सकते हैं। फ़ायरफ़ॉक्स के लोगो की एक बेहद खूबसूरत रंगोली की बात करें, छात्रों की उपस्थिति, उनकी लगन, योजना, संचालन सभी कुछ काफी उम्दा था। हमने अमनप्रीत आलम और सलीम अंसारी के साथ पहले भी उर्दू लोकलाइजेशन के लक्ष्य को लेकर वॉलेंटियर्स को तलाशने की कोशिश की थी परंतु सफलता हाथ नहीं लगी थी। लेकिन इस पूरे कार्यक्रम के दौरान करीब सौ लोग आए थे। हैंड्स-ऑन सेसन में भी उपस्थिति काफी जोरदार थी। लोगों ने पूटल पर अपना खाता बनाया, उर्दू भाषा के फ़ायरफ़ॉक्स लोकलाइजेशन के लिए वहाँ चुनाव किया और कुछ अनुवाद कर सुझाव के रूप में कमिट भी किया। उर्दू लोकलाइजेशन की स्थिति ख़ासकर ओपनसोर्स पर काफी अच्छी नहीं कही जा सकती है और स्वयंसेवकों का अभाव एक प्रमुख कारण रहा है। फैज़ल और उनके साथियों का उत्साह देखकर उम्मीद की जा सकती है कि उर्दू के लिए हम कुछ उत्साही पाएँगे जो ओपनसोर्स में कुछ बढ़िया योगदान जरूर करेंगे। AIMS के सभी लोगों को प्रोग्राम की सफलता की बहुत-बहुत बधाई।